Saroj Verma

लाइब्रेरी में जोड़ें

कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग-(५६)

धंसिका एक साधारण परिवार की कन्या थी,उसके पिता इत्र विक्रेता थे,जिनका नाम बंसीधर था,धंसिका की माँ मणिदीपा भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्पों का इत्र बनाना जानती थी,जो उन्होंने अपनी सास से सीखा था,इत्र का व्यापार बंसीधर के यहाँ पीढ़ियों से चला आ रहा था ,चूँकि धंसिका की माँ मणिदीपा मेरी छोटी बहन थी इसलिए उसे औषधियों के विषय में भी अत्यधिक जानकारी थी,वो इसलिए कि मेरे पिता मेरी ही भाँति प्रसिद्ध वैद्य थे,वें सभी रोगों का उपचार भलीभाँति जानते थे,बाल्यकाल से हम दोनों भाई बहन उनकी छत्रछाया में रहे थे इसलिए हमें भी औषधियों के विषय में अत्यधिक जानकारी हो चुकी थी..... धंसिका भी बाल्यकाल से अपने माता पिता के संग इत्र बनाने की तरह तरह की विधियाँ सीखती आई थी और वो अब इस कला में अत्यन्त निपुण हो चुकी थी,जब भी कोई उन्हें इत्र बनाने का कार्य सौंपता तो धंसिका बड़ी ही तन्मयता से इस कार्य को पूर्ण करती और इत्र पाने वाला सदैव प्रसन्न होकर ही लौटता था,अब धंसिका नवयुवती हो चुकी थी इसलिए उसके माता पिता उसके लिए सुयोग्य वर ढूढ़ रहे थे,धंसिका थी भी अत्यधिक सुन्दर थी,उसका श्वेत वर्ण,छरहरी काया,सुन्दर काले घने केश,सुन्दर नैन नक्श की भी वो धनी थी.... उस समय गिरिराज किसी राज्य के राजा के यहाँ सैनिक हुआ करता था,किन्तु उसे अपना ये पद तनिक भी पसंद नहीं था,इसलिए उसने कूटनीति के द्वारा उस राज्य के सेनापति पर झूठा आरोप लगवा दिया,उसने किसी नवयुवती को धन का लालच देकर वहाँ के राजा के पास ये कहकर भेजा कि वो राजा से जाकर ये कहें कि सेनापति ने मेरा शील भंग किया है और वो नवयुवती गिरिराज की बात मानकर रोती बिलखती राजा के पास जा पहुँची और उनसे वही कहा जो गिरिराज ने उसे कहकर भेजा था और इस बात की पुष्टि गिरिराज ने स्वयं की कि उसने सेनापति को उस नवयुवती का शील भंग करते थे देखा है.... अन्ततोगत्वा राजा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सेनापति दुष्कर्मी है और उसे इस अपराध हेतु कड़ा दण्ड मिलना चाहिए,इसके पश्चात सेनापति को उस दुष्कर्म हेतु कड़ा दण्ड मिला और गिरिराज को सेनापति का पद और गिरिराज यही तो चाहता था,इधर गिरिराज सेनापति बना तो उसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई और साथ साथ सारे राज्य पर उसका आतंक भी बढ़ गया,वो राजा की जानकारी के बिना प्रजा से मुँहमाँगा लगान उगाहने लगा,प्रजा गिरिराज से पीड़ित थी किन्तु ये सूचना राजा तक नहीं पहुँच पा रही थी.... क्योंकि इसका ये कारण था कि राजा की तीसरी रानी को गिरिराज ने अपने मोहपाश में फाँस रखा था,चूँकि राजा अब वृद्ध हो चला था और उसकी तीसरी रानी अभी नवयौवना थी और गिरिराज भी तब नवयुवक था,इसलिए तीसरी रानी और गिरिराज के मध्य प्रेमप्रसंग चल रहा था,गिरिराज ने ये सारा षणयन्त्र केवल उस राज्य को अपने आधीन करने के लिए किया था,उसके मस्तिष्क में षणयन्त्रों का भण्डार था,वो बस केवल किसी भी भाँति राजा का पद पाना चाहता है,इसलिए उस राज्य को पाने हेतु उसने अपनी सभी युक्तियाँ लगा दी थी,साम,दाम,दण्ड,भेद कैसें भी करके उसे उस राज्य का राजा बनना था.... और उधर राजा की तीसरी रानी रुपश्री गिरिराज के प्रेम में पागल थी और उसके लिए कुछ भी करने को तत्पर थी,गिरिराज भी चाहता था कि जैसा वो कहे तो रुपश्री वही करें,गिरिराज की योजना थी कि वो दोनों बड़ी रानियों के राजकुमारों को विष देकर उनकी हत्या करवा दे,बड़ी रानी सम्पदा के दो राजकुमार थे और मँझली रानी श्रीलता के एक राजकुमार और एक राजकुमारी थे,किन्तु रुपश्री अभी भी निःसन्तान थी,इसी बीच रुपश्री ने गिरिराज के समक्ष इच्छा प्रकट की कि उसे कमल के पुष्प का इत्र चाहिए, अब गिरिराज भला रुपश्री का कहा कैसें टाल सकता था,इसलिए वो स्वयं कमल के पुष्प के इत्र की खोज में निकल पड़ा .... उसने सैनिकों से कहा कि जाकर पता करो कि सबसे अच्छा इत्र कहाँ मिल सकता है और सैंनिक उसके कहे अनुसार इत्र की खोज में निकल पड़े और उन्होंने ज्ञात किया कि कोई बंसीधर नामक व्यक्ति इत्र विक्रेता है उसकी पत्नी मणिदीपा और उसकी पुत्री धंसिका बड़ा ही अच्छा इत्र बनातीं हैं,वें सभी प्रकार के पुष्पों का इत्र बनाती हैं.... ऐसी सूचना मिलने पर गिरिराज ने सोचा कि वो स्वयं ही बंसीधर के पास रुपश्री के लिए इत्र लेने जाएगा और वो अन्ततः वहाँ इत्र लेने पहुँचा,उसने सर्वप्रथम बंसीधर से भेंट की तो बंसीधर ने गिरिराज का परिचय अपनी पत्नी मणिदीपा और पुत्री धंसिका से करवाया और जैसे ही गिरिराज ने धंसिका को देखा तो वो उस पर मोहित हो बैठा,उसने उन दोनों के समक्ष कमल के पुष्प के इत्र की माँग की तो धंसिका बोली... "सेनापति! कमल का इत्र बनाने हेतु कुछ समय चाहिए,क्योंकि कमल के पुष्प का इत्र तो समाप्त हो चुका है,क्षमा कीजिए अभी उसे मैं आपको देने हेतु असमर्थ हूँ", "कोई बात नहीं! मैं प्रतीक्षा कर सकता हूँ,तो कब आऊँ इत्र लेने ?", गिरिराज ने धंसिका से पूछा.... "जी! पन्द्रह दिवस पश्चात आइए,क्योंकि कमल के इत्र हेतु पुष्प चुनने अत्यधिक दूर के सरोवर जाना पड़ता है,यहाँ आप पास के क्षेत्र में जो भी सरोवर हैं वहाँ के पुष्प इत्र बनाने योग्य नहीं है,इत्र बनाने हेतु अच्छे पुष्प चाहिए होते हैंं",धंसिका बोली.... "क्या वो सरोवर अत्यधिक दूर है"?,गिरिराज ने पूछा... "जी! सेनापति!",धंसिका बोली.... "यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं आपको उस सरोवर तक ले जाने हेतु तत्पर हूंँ",गिरिराज बोला.... "नहीं! आप इस कार्य हेतु कष्ट ना उठाएं,मैं स्वयं उस सरोवर से पुष्प चुन लाऊँगी",धंसिका बोली... "इसका तात्पर्य है कि आपको मेरे संग उस सरोवर तक जाने में आपत्ति है",गिरिराज बोला... "नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है सेनापति जी!",धंसिका बोली... "तो इसका कारण एक ही हो सकता है कि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है",गिरिराज बोला... "नहीं! सेनापति जी! ऐसा कुछ भी नहीं है",धंसिका बोली... "तो आपको मेरे संग जाने में इतनी आपत्ति क्यों है"?,गिरिराज ने धंसिका से पूछा... तब धंसिका की माँ मणिदीपा बोली.... "पुत्री! जब सेनापति जी इतना कह रहे हैं तो इनके संग ही पुष्प चुनने सरोवर तक चली जाओ ना!", "अब तो आपकी माता जी ने भी अनुमति दे दी",गिरिराज बोला... "तो ठीक है! कल सुबह प्रातःकाल आप मुझे ले जाने यहाँ आ जाइएगा,तब मैं आपके संग पुष्प चुनने चलूँगी",धंसिका बोली.... और दूसरे दिवस गिरिराज अपने रथ पर सवार होकर धंसिका को लेने आ पहुँचा,वो रथ राजा का था,जिसे रुपश्री के कहने राजा ने गिरिराज को ले जाने की अनुमति दे दी थी और इसके पश्चात धंसिका और गिरिराज उस रथ पर सवार होकर उस सरोवर की ओर चल पड़े.....

क्रमशः.... सरोज वर्मा.....

   16
2 Comments

Mohammed urooj khan

16-Oct-2023 12:39 PM

👌👌👌👌👌

Reply

Khushbu

15-Oct-2023 11:29 PM

Nice

Reply